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अमेरिका जैसे अन्य देशों में वैज्ञानिक इस बात पर बल देते रहे कि गुफाओं के भीतर प्रकाश नहीं होने से यहां के जीवों में जैविकीय घड़ी नहीं होती है। इस मिथक को पं. रविशंकर शुक्ल विवि के शोधकर्ता डॉ.एके पति ने तोड़ दिया है।
लाइफ साइंस के प्रोफेसर डॉ. पति बस्तर की कुटुमसर गुफा की मछलियों पर 1983 से अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि यहां के जीवों में जैविकीय घड़ी खत्म नहीं हुई है। वे भी दिन-रात के हिसाब से अपने व्यवहार में बदलाव करती हैं।
अमेरिकन अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक स्प्रिंगर ने इंवारयरमेंटल बायोलॉजी ऑफ फिशेज जनरल में प्रकाशित किया है। विदेशी वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार किया। अमेरिकन साइंस पब्लिसर ने बायोलॉजी ऑफ सबटेरेनियन फिशेज किताब में 35 पेज का चेप्टर ही डाल दिया है।
इस किताब के चेप्टर 12 में अकेले रविवि के डॉ. पति के रिसर्च को पढ़ाया जा रहा है। किताब के एडिटर्स ब्राजील के इलियोनोरा ट्रैजनो, मारिया इलिना बाइच्यूट और बीजी कपूर शामिल हैं।
ऐसे किया शोध
डॉ. पति ने इन मछलियों में कुछ को आर्टीफिशियल लैब में रखकर अध्ययन किया। जब लैब में आर्टीफिशियल रात करते, तब मछलियां सक्रिय हो जाती थीं। प्रकाश पड़ने पर वे इससे प्रभावित होती रहीं। इसका मतलब कि वे प्रकाश को रिस्पॉन्स करती हैं।
नेचुरल लैब भी माना
शोधकर्ता का कहना है कि कुटुमसर एक नेचुरल लैब है। उन्होंने नीति आयोग को पत्र लिखकर राज्य की कुटुमसर समेत अन्य गुफाओं को संरक्षित करने के लिए कहा है। कुटुमसर नेचुरल लैब है। ये जमीन से 55 फीट नीचे 330 मीटर लंबी है। इन गुफाओं में बायोलॉजिकल, जेनेटिक्स, कैंसर जैसी बीमारियों पर भी अध्ययन कर सकते हैं। डॉ. पति ने यह भी दावा किया है कि यहां की मछलियां अंधी नहीं हैं।
कहां है कुटुमसर
राज्य के बस्तर में चूना पत्थर से बनी कुटुमसर गुफा को देखने के लिए दुनियाभर से जियोलॉजिस्ट और टूरिस्ट आते हैं। यहां फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद, इंस्टिट्यूट ऑफ पेलको बॉटनी लखनऊ और भूगर्भ अध्ययन शाला लखनऊ के संयुक्त शोध से यह बात सामने आई थी कि प्रागैतिहासिक काल में कुटुमसर की गुफा में मनुष्य रहा करते थे।
जैविकी घड़ी क्या है
जीवधारियों के शरीर में समय निर्धारण की एक व्यवस्था होती है, जिसे हम जैविक घड़ी (बायोलॉजिकल क्लॉक) कहते हैं। हम रात को समय विशेष पर सोने जाते हैं तथा सुबह स्वत: जाग जाते हैं। हम निद्रा में रहते हैं, किंतु हमारा मस्तिष्क तब भी सक्रिय रहता है। यह जैविकीय घड़ी है।
यह माना जाता रहा है कि जहां प्रकाश नहीं पहुंचता, खासकर गुफाओं के भीतर बायोलॉजिकल क्लॉक खत्म हो गया है। इस पर हमने पाया कि अभी भी इसका अस्तित्व है।
अमेरिका जैसे अन्य देशों में वैज्ञानिक इस बात पर बल देते रहे कि गुफाओं के भीतर प्रकाश नहीं होने से यहां के जीवों में जैविकीय घड़ी नहीं होती है। इस मिथक को पं. रविशंकर शुक्ल विवि के शोधकर्ता डॉ.एके पति ने तोड़ दिया है।
लाइफ साइंस के प्रोफेसर डॉ. पति बस्तर की कुटुमसर गुफा की मछलियों पर 1983 से अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि यहां के जीवों में जैविकीय घड़ी खत्म नहीं हुई है। वे भी दिन-रात के हिसाब से अपने व्यवहार में बदलाव करती हैं।
अमेरिकन अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक स्प्रिंगर ने इंवारयरमेंटल बायोलॉजी ऑफ फिशेज जनरल में प्रकाशित किया है। विदेशी वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार किया। अमेरिकन साइंस पब्लिसर ने बायोलॉजी ऑफ सबटेरेनियन फिशेज किताब में 35 पेज का चेप्टर ही डाल दिया है।
इस किताब के चेप्टर 12 में अकेले रविवि के डॉ. पति के रिसर्च को पढ़ाया जा रहा है। किताब के एडिटर्स ब्राजील के इलियोनोरा ट्रैजनो, मारिया इलिना बाइच्यूट और बीजी कपूर शामिल हैं।
ऐसे किया शोध
डॉ. पति ने इन मछलियों में कुछ को आर्टीफिशियल लैब में रखकर अध्ययन किया। जब लैब में आर्टीफिशियल रात करते, तब मछलियां सक्रिय हो जाती थीं। प्रकाश पड़ने पर वे इससे प्रभावित होती रहीं। इसका मतलब कि वे प्रकाश को रिस्पॉन्स करती हैं।
नेचुरल लैब भी माना
शोधकर्ता का कहना है कि कुटुमसर एक नेचुरल लैब है। उन्होंने नीति आयोग को पत्र लिखकर राज्य की कुटुमसर समेत अन्य गुफाओं को संरक्षित करने के लिए कहा है। कुटुमसर नेचुरल लैब है। ये जमीन से 55 फीट नीचे 330 मीटर लंबी है। इन गुफाओं में बायोलॉजिकल, जेनेटिक्स, कैंसर जैसी बीमारियों पर भी अध्ययन कर सकते हैं। डॉ. पति ने यह भी दावा किया है कि यहां की मछलियां अंधी नहीं हैं।
कहां है कुटुमसर
राज्य के बस्तर में चूना पत्थर से बनी कुटुमसर गुफा को देखने के लिए दुनियाभर से जियोलॉजिस्ट और टूरिस्ट आते हैं। यहां फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद, इंस्टिट्यूट ऑफ पेलको बॉटनी लखनऊ और भूगर्भ अध्ययन शाला लखनऊ के संयुक्त शोध से यह बात सामने आई थी कि प्रागैतिहासिक काल में कुटुमसर की गुफा में मनुष्य रहा करते थे।
जैविकी घड़ी क्या है
जीवधारियों के शरीर में समय निर्धारण की एक व्यवस्था होती है, जिसे हम जैविक घड़ी (बायोलॉजिकल क्लॉक) कहते हैं। हम रात को समय विशेष पर सोने जाते हैं तथा सुबह स्वत: जाग जाते हैं। हम निद्रा में रहते हैं, किंतु हमारा मस्तिष्क तब भी सक्रिय रहता है। यह जैविकीय घड़ी है।
यह माना जाता रहा है कि जहां प्रकाश नहीं पहुंचता, खासकर गुफाओं के भीतर बायोलॉजिकल क्लॉक खत्म हो गया है। इस पर हमने पाया कि अभी भी इसका अस्तित्व है।
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